Neha Byadwal IAS Success Story: नेहा ब्याडवाल ने UPSC की तैयारी के दौरान तीन साल तक मोबाइल और सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाई, जिससे उनका फोकस और एकाग्रता चरम पर पहुंच गई। जीवन के इस कठिन निर्णय के पीछे उनका लक्ष्य स्पष्ट था — सिविल सेवा में सफलता।
प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा
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नेहा का जन्म 23 जुलाई 1999 को जयपुर में हुआ और उन्होंने बचपन छत्तीसगढ़ में बिताया ।
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उनके पिता, श्रवण कुमार, एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी हैं, जिन्होंने शुरुआत से ही उन्हें लगातार प्रोत्साहन दिया ।
विकास: शिक्षा और असफलताओं
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नेहा ने DB Girls College, रायपुर से इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई की और उसमें टॉपर भी रहीं।
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SSC परीक्षा पास करने के बाद भी उनका उद्देश्य सिर्फ UPSC ही था।
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बार-बार असफलता के बाद उन्होंने ठान लिया कि चार प्रयासों के बाद भी हार नहीं मानूँगी, और 2021 में उनका सपना साकार हुआ।
UPSC में सफलता
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नेहा ने कुल 960 अंक बनाए, जिसमें इंटरव्यू का स्कोर 151 अंक था, और उन्हें AIR 569 प्राप्त हुआ।
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तब उनकी उम्र सिर्फ 24 थी, और इस उपलब्धि ने उन्हें देश की सबसे युवा महिला IAS अधिकारियों में शामिल कर दिया।
मोबाइल से दूरी: एक कठिन लेकिन सही निर्णय
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एक ट्वीट में इस बात को रेखांकित किया गया कि उन्होंने “Destroy UPSC‑prep cult” को चुनौती दी और कहा कि “This UPSC‑prep cult needs to be dismantled & destroyed…”।
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नेटिज़न्स में बहस शुरू हुई कि क्या बिना फोन रहकर सामाजिक दुनिया से कट जाना सही था या नहीं। उदाहरण के लिए, एक इंस्टाग्राम यूज़र ने लिखा: “So, she took a bold step–she stayed away from mobile phones for three years to focus only on her studies.”।
वर्तमान स्थिति
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नेहा अब उ.प्र. के जालौन जिले में संयुक्त मजिस्ट्रेट (Joint Magistrate) के रूप में तैनात हैं ।
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साथ ही, वह Instagram पर मोटिवेशनल कंटेंट और स्टडी टिप्स साझा करती हैं, तथा देशभर के UPSC तैयारी कर रहे छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं ।
सीख और सन्देश
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डिजिटल डिटॉक्स: स्मार्टफोन और सोशल मीडिया से दूरी रखने से ध्यान केंद्रित होता है, और तैयारी में कारगर फोकस आता है।
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संघर्ष की ताकत: लगातार प्रयास और असफलता का सामना करने की क्षमता ही सफलता की राह बनाती है।
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परिवार का सहयोग: पिता का विश्वास और परिवार की दृढ़ प्रेरणा सफलता में अहम भूमिका निभाती है।
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उनके अनुभवों पर विचार: कुछ लोगों ने मोबाइल से दूरी को सामाजिक विमुखता बताया, लेकिन नेहा ने इसे मानसिक स्पष्टता हासिल करने का रास्ता माना।
नेहा ब्याडवाल की कहानी एक मिसाल है — “अगर इरादा मजबूत हो, तो रास्ते खुद बनते हैं।” डिजिटल युग में यह संदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ ध्यान भटके बिना लक्ष्य हासिल करना बड़ी चुनौती है।